ज़मीनी हकीक़त : कहीं मंहंगे भक्त, कहीं सस्ते भगवान्

आजकल नया दौर शुरू हो गया है, महंगे और सस्ते का जोकि हमारे समाज का एक स्टेटस सिम्बल है ।  जिस मंदिर मस्ज़िद गुरुद्वारा सब मे हर धार्मिक स्थान पर सबको एक बराबर समझा जाता है वहां आज सब शायद सामान नहीं है। क्योंकि अगर किसी भी धार्मिक स्थान पर कोई नेता या उच्च दर्ज़े का अफसर पहुँचता है तो उसके लिए प्रवेश द्वार से लेकर बहार निकलने तक  उच्च कोटि के प्रबंध होते है। उक्त व्यक्ति या नेता के लिए पूरा प्रशासन सतर्क और जनता परेशान होती है।
 इसी बीच आजकल प्रभु  दर्शनों ने  भी रेट लगने लगे है-पर्चियां काटी (जोकि मंदिर या भवन विकास के लिए प्रयोग में लायी जाती है ) जाती है। कोई पर्ची 10 देकर लेता है तो कोई 10 हज़ार, हर कोई अपनी पहुँच के अनुसार पर्ची कटवाता है। लेकिन यहाँ भी भेड़ चाल देखि है - देखा देखि होती है। ( यहाँ किसी व्यक्ति विशेष की बात नहीं करूँगा क्योंकि  वर्तमान में सबके साथ वास्तविक तौर पर होता हैं। ) जहाँ सरकारी अफसर दर्शनों के लिए किसी कतार में न खडा होकर सीधा द्वार तक पहुँचता है। वहीँ आम आदमी घंटों इंतज़ार कर मेहनत से मिष्ठान ग्रहण करता है। कहीं कही तो रेलवे टिकेट की तरह पहले ही बुकिंग हो जाती है कि आज श्रीमान नेता जी आने वाले है - विशेष कपाट खोल दिया जाए।जिससे  साफ़ जाहिर है कि कहीं मंहंगे भक्त, कहीं सस्ते भगवान् और कहीं  मंहंगे भगवान्,कहीं सस्ते भक्त।

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