क्यों अमरीका-कनाडा इंडियन स्टूडेंट्स के लिए बंद कर रहे हैं अपने दरवाज़े ? क्या विदेश में ख़राब हो रही भारतियों की छवि है इसकी वजह ?



EXCERPT - अमरीका और कनाडा के मूल निवासियों का कहना है की कई साल पहले जो कोई एक व्यक्ति यहाँ आया था, आज उसका पूरा कुनबा ही यहाँ आ कर बसा हुआ है। यानि की भारत से आने वाले लोग अक्सर अपने परिवार को वहां लेजाकर बसा देते हैं, जिस से उन देशों की पॉपुलेशन डेमोग्राफी ख़राब होती है, और ये वहां के मूल निवासियों के लिए निराशाजनक है। 

अमेरिका और कनाडा, भारत से विदेश जाने वालों की पहली पसंद हैं, लेकिन पिछले कुछ महीनों में अमेरिका और कनाडा की तरफ से भारतियों के वीज़ा धड़ाधड़ रिजेक्ट किए जा रहे हैं। अमेरिका ने H1B वीज़ा की फीस बढ़ा कर एक लाख डॉलर यानि लगभग 90 लाख भारतीय रुपए कर दी है, H1B वीज़ा वही वीज़ा है जिसके तहत कंपनियां भारतीय कर्मचारियों, खास कर के IT सेक्टर के इंजीनियरों को काम के लिए अमेरिका भेजती हैं। ये बड़ी फीस देना अब बड़ी कंपनियों के लिए भी आसान नहीं होगा। हाल ही में अमेरिका के केलिफ़ोर्निया में 21 साल के भारतीय पंजाबी नौजवान ट्रक ड्राइवर की वजह से ज़बरदस्त सड़क हादसा हुआ जिसमे 3 लोगों की मौत हो गई। जादातर भारतीय अमरीका और कनाडा जैसे देशों में जा कर ड्राईवरी कर के रोज़गार कमाते हैं क्यूंकि ये आमदन का एक सरल साधन है जिसके लिए किसी पढ़ाई या डिग्री की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन भारतीय ड्राइवरों या गैर अमरीकी ड्राइवरों द्वारा बढ़ते सड़क हादसों की वजह से अमरीका ने अब लाइसेंस प्रक्रिया भी मुश्किल कर दी है। अमरीका में ड्राइवरी करने के लिए अब अंग्रेजी के टेस्ट में पास होना अनिवार्य होगा वरना अमरीका में लाइसेंस हासिल नहीं होगा। जहाँ अमेरिका की तरफ से इमिग्रेंट्स के लिए एक के बाद एक सख्त रूल्स निकाले जा रहे हैं वहीँ अमरीका का पडोसी देश कनाडा भी पीछे नहीं है। 

फीस बढ़ने के बाद भी नहीं मिल रहे वीज़ा !

कनाडा ने भी इंटरनेशनल स्टूडेंट्स के वीज़ा एप्लिकेशन में बंपर कटौती की है जिनमे भारतीय स्टूडेंट्स के वीज़ा में सबसे ज़ादा कट-डाउन किया गया है। कनाडा का कहना है की जादातर वीज़ा आवेदन में फर्जीवाड़ा पाया गया, किसी का कॉलेज मानकों पर खरा नहीं उत्तर रहा था, किसी के बैंक स्टेटमेंट्स में फ्रॉड था, किसी के पिछले पढाई के दस्तावेज़ों में कमी थी। इस से पहले भी 2024 में कनाडा ने स्टूडेंट वीज़ा के लिए बैंक में शो करने वाली रकम को 10 हज़ार कनाडाई डॉलर से बढ़ा कर 20 हज़ार कनाडाई डॉलर कर दिया था, जबकि कॉलेज की फीस (6 से 8 लाख भारतीय रुपए सालाना) अलग से भरनी होगी। बढ़ कर 30 लाख भारतीय रूपए के करीब पहुँच चूका है जो किसी आम परिवार के लिए बहुत ही ज़ादा रकम है। स्टूडेंट वीज़ा प्रक्रिया पहले के मुकाबले और मुश्किल बनाने के बावजूद भी कनाडा आसानी से भारतीय छात्रों को वीज़ा नहीं देना चाहता। इतना ही नहीं मार्क कार्नी की सरकार एक ऐसा बिल लाने की तैयारी में है जो कनाडा में स्टूडेंट वीज़ा या टेम्परेरी वीज़ा होल्डर को कभी भी वापस भेजने की पावर रखता है। 

खबर ये भी है की अब अमरीका या कनाडा जाने के लिए वीज़ा अप्प्लाई करने वाले लोगों के सोशल मीडिया हैंडल्स पर भी एजेंसीज़ की नज़र होगी। उन लोगों पर कड़ी नज़र रहेगी जो किसी भी तरह की भड़काऊ टिपण्णी को शेयर या अप्पत्तिजनक अकाउंट को फॉलो करते हैं। 

क्यों अमरीका और कनाडा देश भारतियों को वीज़ा दे कर राज़ी नहीं है ?

विशेषज्ञों का कहना है कि कनाडा के साथ भारत का तनाव भी इसमें एक बड़ा कारण है। लेकिन इसकी और भी कई वजह हैं। 
कनाडा अमरीका में भारतीय मूल के लोग कई टॉप पोज़िशन्स पर हैं, लेकिन इनकी तादाद उन लोगों से कहीं ज़ादा कम है जो अपनी हरकतों की वजह से भारत का नाम खराब कर रहे हैं। ऐसी कई ख़बरें वायरल हुईं जिनमे भारतीय महिलाओं को स्टोर से सामान चुराते पकड़ा गया। सोशल मीडिया पर भी ऐसे कई वीडियो मौजूद हैं जिसमे भारतीय लोग विदेशों में जा कर गैरसामाजिक गतिविधियां करते पकड़े गए हैं, और इन वीडिओज़ को अगर आप देखें तो इनके नीचे लिखे कमेंट्स में भारतीय लोगों के लिए विदेशियों की नफरत साफ़ झलकती है। 

स्टडी वीज़ा पर जा के दिहाड़ी पर लग जाते हैं स्टूडेंट्स !

पंजाब से हर साल स्टूडेंट्स की एक बड़ी तादाद अमरीका और कनाडा में स्टडी वीज़ा पर जाती है। आंकड़े बताते हैं की इनमे से 40% स्टूडेंट्स बीच में ही अपना कॉलेज ड्राप कर देते हैं और वहां दिहाड़ी मज़दूरी के काम में लग जाते हैं, जिसकी वजह से वहां की मार्किट पर प्रभाव पड़ता है, वहां के लोगों के लिए बेरोज़गारी बढ़ती है। अमरीका और कनाडा के मूल निवासियों का कहना है की कई साल पहले जो कोई एक व्यक्ति यहाँ आया था, आज उसका पूरा कुनबा ही यहाँ आ कर बसा हुआ है। यानि की भारत से आने वाले लोग अक्सर अपने परिवार को वहां लेजाकर बसा देते हैं, जिस से उन देशों की पॉपुलेशन डेमोग्राफी ख़राब होती है, और ये वहां के मूल निवासियों के लिए निराशाजनक है। वहां की सरकारों के लिए ये एक बड़ा चुनावी मुद्दा भी बन जाता है क्यूंकि असल वोटर वहां के मूलनिवासी हैं जिन्हे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। 

बीते 25 सालों में 3 गुना महंगा हु अविदेश जाना !

बीते 25 सालों के आंकड़े बताते हैं की साल 2000 में विदेश पढाई के लिए जाना या टूरिस्ट वीज़ा पर जाना कहीं ज़ादा आसान था, उस वक्त न ज़ादा दस्तावेज़ लगते थे न ही नाजायज़ पैसा देना पड़ता था। विदेश जाने का क्रेज़, ग्लोबलाइज़ेशन, भारत में बढ़ती बेरोज़गारी, क्वालिटी ऑफ लाइफ, और छोटे शहरों के लोगों के दिल में बसी घर से निकलने की चाह, ऐसे ही कई कारणों की वजह से आज इम्मीग्रेशन का मार्किट इतना बूम कर गया है की यहाँ धोखाधड़ी करने वाले फ़र्ज़ी एजेंट्स की भरमार है जिनकी वजह से इम्मीग्रेशन में बढ़ते फर्ज़ीवाड़े के मामलों को रोकने के लिए अमरीका और कनाडा जैसे देश इतनी सख्ती पर उतर आए हैं। 

भारतियों के लिए हीन-भावना !

अमरीका - कनाडा के लोग भारतियों को ठीक वैसे ही देखते हैं जैसे यहाँ बसे लोग बांग्लादेशियों को देखते हैं, या किसी दक्षिण अफ्रीकी देश के लोगों को देखते हैं। जैसी छवि भारतियों के ज़हन में बांग्लादेश या साऊथ अफ़्रीकी लोगों की है कुछ वैसी ही छवि विदेशों में भारतियों की है। लगातार गैरकानूनी कॉलसेंटर्स द्वारा अमरीकी लोगों का डाटा चुरा कर उनका बैंक अकाउंट खली करने की भी खूब ख़बरें आती हैं, विदेशों में स्कैमर शब्द को भारतीय का प्रायवाची कहा जाने लगा है। 

एक्सपर्ट्स का मानना है की जिस तरह से भारत में बेरोज़गारी और जनसँख्या बढ़ रही है और राजनीती का स्तर नीचे गिर रहा है, आने वाली पीढ़ियां भारत में रहना पसंद नहीं करेंगी और तब तक विदेश जाने की प्रक्रिया और भी सख्त हो चुकी होगी जैसे पिछले 25 सालों से अब तक हुई है। 
सिमरन कौर, नई दिल्ली

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