बड़ा घोटाला! मेहनत किसान की, अमीर बन रहा रिलायंस , भाकियू के प्रदेश अध्यक्ष रतन मान ने किया करोड़ों अरबों के घोटाले का पर्दाफाश
रिलायंस का 'पुराना पाप' और अब 'नया फ्रॉड': जब CM खट्टर के 'डंडे' से निकले थे ₹8.69 करोड़, तो क्या अब तोशाम के घोटाले पर होगी बड़ी कार्रवाई?
भिवानी 3 अक्टूबर 2025: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) - जो किसानों के लिए एक सुरक्षा कवच होनी चाहिए थी, वह हरियाणा में बार-बार विवादों और कॉर्पोरेट कंपनियों की मनमानी का अखाड़ा बनती जा रही है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी है, जिसका किसानों के प्रति रवैया गंभीर सवाल खड़े करता है। कंपनी का इतिहास बताता है कि वह किसानों का हक देने में आनाकानी करती है, और जब दबाव पड़ता है तो ही झुकती है।
एक तरफ हाल ही में भिवानी के तोशाम में कंपनी द्वारा वजन मशीन से छेड़छाड़ कर क्लेम डुबाने का एक संगठित फ्रॉड सामने आया है, तो वहीं दूसरी तरफ अतीत के पन्ने पलटें तो पता चलता है कि कंपनी ने किसानों के करोड़ों रुपये दबाए रखे, जिसे खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को अपने 'डंडे' के जोर पर निकलवाना पड़ा था।
फ्लैशबैक: जब तत्कालीन CM की सख्ती से 24 घंटे में जमा हुए ₹8.69 करोड़
यह मामला 2017 के खरीफ सीजन का है। रेवाड़ी जिले के कोसली क्षेत्र के 4,499 किसान अपनी बर्बाद हुई फसल के मुआवजे के लिए संघर्ष कर रहे थे। भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष रतनमान ने बताया कि रिलायंस जनरल इंश्योरेंस पर उनका ₹8.69 करोड़ का बकाया था, लेकिन कंपनी भुगतान करने को तैयार नहीं थी। मामला तब गरमाया जब मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने रेवाड़ी में जिला लोक शिकायत निवारण समिति की बैठक की अध्यक्षता की। जब यह शिकायत उनके सामने आई, तो मुख्यमंत्री ने कंपनी के अधिकारियों को सीधे और सख्त शब्दों में चेतावनी दी कि "या तो आप किसानों के बकाये का तुरंत भुगतान करें, वरना हरियाणा में भविष्य की सभी योजनाओं के लिए आपकी कंपनी को ब्लैकलिस्ट कर दिया जाएगा। हम IRDAI (भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण) को भी आपके खिलाफ लिखेंगे।"
मुख्यमंत्री का यह कड़ा रुख रामबाण साबित हुआ। कंपनी के अधिकारियों ने 24 घंटे के भीतर कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के खाते में ₹8.69 करोड़ की पूरी राशि जमा करा दी। भाकियू प्रदेश अध्यक्ष रतनमान ने बताया कि उपायुक्त ने इसकी पुष्टि की और मुख्यमंत्री ने एक सप्ताह के भीतर यह पैसा किसानों के खातों में वितरित करने का निर्देश दिया। यह घटना साबित करती है कि कंपनी स्वेच्छा से नहीं, बल्कि केवल शीर्ष सरकारी दबाव के तहत ही किसानों के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाती है।
वर्तमान का फ्रॉड: तोशाम में रंगे हाथों पकड़ी गई 'क्लेम डुबाओ' साजिश
भाकियू प्रदेश अध्यक्ष रतनमान ने कहा कि अगर रेवाड़ी का मामला भुगतान में 'देरी' और 'आनाकानी' का था, तो भिवानी के तोशाम में जो हुआ है वह एक सुनियोजित 'आपराधिक साजिश' की ओर इशारा करता है। यहाँ कंपनी का कर्मचारी फसल कटाई प्रयोग के दौरान वजन मशीन से छेड़छाड़ करते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया। उसका मकसद था कागजों में फसल की पैदावार को कृत्रिम रूप से बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना।
यह एक खतरनाक पैटर्न है। पैदावार अधिक दिखाने का मतलब है कि पूरे क्षेत्र के किसानों को फसल के नुकसान के बावजूद बीमा क्लेम के लिए अपात्र घोषित कर दिया जाए। यह सीधे-सीधे क्लेम देने की नौबत आने से पहले ही उसे खत्म कर देने की साजिश है। इस मामले में खंड कृषि अधिकारी की शिकायत पर FIR भी दर्ज हो चुकी है और कर्मचारी की स्वीकारोक्ति का वीडियो भी वायरल है।
दो मामले, एक पैटर्न और बड़ा सवाल
ये दोनों घटनाएं अलग-अलग समय और तरीकों से हुईं, लेकिन इनका सार एक ही है: किसानों को उनके वैध हक से वंचित करना।
* रेवाड़ी (2017) मामला: क्लेम बनने के बाद भुगतान न करना, लटकाए रखना।
* तोशाम (2025) मामला: क्लेम बनने की प्रक्रिया में ही धोखाधड़ी करना ताकि भुगतान की देनदारी ही न बने।
भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के प्रदेश अध्यक्ष रतन मान ने तोशाम मामले को लेकर कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों की गिरफ्तारी और कंपनी को ब्लैकलिस्ट करने की मांग की है। यूनियन का कहना है कि यह एक संगठित अपराध है और सिर्फ एक कर्मचारी पर कार्रवाई करना लीपापोती करने जैसा होगा। असली परीक्षा अब सरकार की है।
किसानों की आवाज पर चुप्पी, विपक्ष भी जिम्मेदार
भाकियू प्रदेश अध्यक्ष रतनमान ने कहा कि किसानों के मामलों में अक्सर देखा जाता है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही गंभीर नहीं नजर आते। जबकि किसानों की समस्याएँ सीधे उनकी जीविका और अस्तित्व से जुड़ी होती हैं, फिर भी राजनीतिक दल इन मुद्दों को गंभीरता से उठाने में अक्सर पीछे हटते हैं। खासकर विपक्षी दलों की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है, क्योंकि उन्हें सत्ता की कमियों और किसानों के हक के लिए आवाज उठानी चाहिए। लेकिन यदि विपक्ष भी इन मामलों में चुप रहता है या सक्रिय नहीं दिखता, तो यह न केवल किसानों के हितों की अनदेखी है, बल्कि विपक्ष खुद अपने कर्तव्यों में असफल साबित होता है। ऐसे में जनता के सामने यह संदेश जाता है कि विपक्ष भी सत्ता की तरह ही किसानों की समस्याओं के प्रति उदासीन है। यही वजह है कि किसान आंदोलन, बीमा या सरकारी नीतियों से जुड़ी अनदेखी के मामलों में विपक्ष की चुप्पी उसे कठघरे में खड़ा कर देती है, और उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाती है।
रतनमान ने कहा कि रेवाड़ी मामले में उस समय के मुख्यमंत्री खट्टर ने अपनी दृढ़ता से यह तो साबित कर दिया कि वे किसानों के साथ अन्याय बर्दाश्त नहीं करेंगे। अब असली परीक्षा तोशाम के फ्रॉड पर है। क्या सरकार इस मामले की तह तक जाएगी? क्या इस संगठित घोटाले में रिलायंस के शीर्ष प्रबंधन की भूमिका की जांच होगी?
अगर 2017 में किसानों का भुगतान करवाना सरकार की सफलता थी, तो दूसरी तरफ वर्तमान में चल रहे इस फ्रॉड पर लगाम कसना उसकी सबसे बड़ी चुनौती है। हरियाणा के किसान अब यह देख रहे हैं कि क्या सरकार सिर्फ पुराने बकाये वसूलने वाला 'रिकवरी एजेंट' बनेगी या फिर भविष्य में ऐसी धोखाधड़ी को रोकने के लिए 'सख्त प्रशासक' की भूमिका भी निभाएगी।
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