राज्यसभा सांसद पद्मश्री राजिंदर गुप्ता ने प्रारंभिक बाल्यावस्था की देखभाल और शिक्षा को संवैधानिक अधिकार बनाने का किया समर्थन, आंगनवाड़ी व्यवस्था को सुदृढ़ करने की जरूरत पर दिया जोर
चंडीगढ़: राज्यसभा सांसद पद्मश्री राजिंदर गुप्ता ने राज्यसभा में सुश्री सुधा मूर्ति द्वारा पेश किए गए प्राइवेट मेंबर रेजोल्यूशन का पुरजोर समर्थन किया, जिसमें अनुच्छेद 21बी जोड़कर 3 से 6 वर्ष तक के सभी बच्चों को निशुल्क एवं अनिवार्य प्रारंभिक बाल्यावस्था की देखभाल और शिक्षा (ई.ई.सी.ई) का संवैधानिक अधिकार देने का प्रस्ताव है। गुप्ता ने इस पहल को “समय की मांग और वैज्ञानिक दृष्टि से अत्यंत आवश्यक” बताते हुए कहा कि बच्चे के मस्तिष्क का 85% विकास छह वर्ष की आयु तक हो जाता है, इसलिए शुरुआती वर्षों की शिक्षा और देखभाल अत्यंत महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि भारत की आंगनवाड़ी व्यवस्था, जो इस वर्ष अपने 50 वर्ष पूरे कर रही है, 1975 में शुरू हुए 33 पायलट केंद्रों से बढ़कर आज 13.96 लाख आंगनवाड़ी केंद्रों का विशाल नेटवर्क बन चुकी है। इसके बावजूद आधारभूत ढांचे की कमी सेवा की गुणवत्ता को प्रभावित कर रही है। लगभग 3.58 लाख केंद्र अभी भी किराए या अस्थायी स्थानों से संचालित होते हैं। बड़ी संख्या में आंगनवाड़ी केंद्रों में पाइप से जलापूर्ति, शौचालय, रसोई और सौर ऊर्जा जैसी आवश्यक सुविधाओं का अभाव है।
गुप्ता ने कहा कि इन सीमित संसाधनों के बावजूद आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं पर पोषण, टीकाकरण, प्रारंभिक शिक्षा, घर घर जाना और सामुदायिक जागरूकता जैसे 20 से अधिक दायित्व हैं। इसके साथ ही कई बार उन्हें चुनावी कार्यों और सर्वेक्षणों का अतिरिक्त बोझ भी उठाना पड़ता है। उन्होंने कहा कि यदि ई.ई.सी.ई को संवैधानिक अधिकार बनाया जाता है, तो सबसे पहले आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और केंद्रों को मजबूत करना अत्यावश्यक है।
सांसद गुप्ता ने विकलांगता और दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित बच्चों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत भी उजागर की। उन्होंने बताया कि देश में 2.68 करोड़ दिव्यांगजन हैं, जिनमें बड़ी संख्या छह वर्ष से कम आयु के बच्चों की है, जो वर्तमान कानूनी संरक्षण से बाहर हैं। वहीं करीब 70% दुर्लभ बीमारियाँ बचपन में ही प्रकट होती हैं, और 3 से 7 वर्ष की देरी से मिलने वाली पहचान बच्चों में स्थायी विकास हानि का कारण बनती है। देश में 25 लाख से अधिक विशेष जरूरतों वाले बच्चे स्कूलों में हैं, लेकिन प्रशिक्षित विशेष शिक्षकों की संख्या मात्र 12 हजार–15 हजार है, जिससे शुरुआती हस्तक्षेप और थेरेपी बच्चों तक नहीं पहुंच पाती।
उन्होंने कहा कि यदि अनुच्छेद 21बी को प्रभावी बनाना है, तो ई.ई.सी.ई ढांचे में शुरुआती स्क्रीनिंग, हस्तक्षेप और दिव्यांग एवं दुर्लभ रोगों से प्रभावित बच्चों के लिए विशेष सहायता को शामिल करना अनिवार्य होगा।
गुप्ता ने यह भी कहा कि भारत को शुरुआती बाल्यकाल शिक्षा के दृष्टिकोण में व्यापक सुधार की जरूरत है। जापान, फिनलैंड और स्कैंडिनेवियाई देशों का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि वहां शुरुआती शिक्षा केवल ऐ बी सी और संख्याओं तक सीमित नहीं होती, बल्कि आत्मनिर्भरता, भावनात्मक संतुलन, सहयोग, जिम्मेदारी और व्यवहारिक जीवन कौशलों पर जोर दिया जाता है। उन्होंने कहा कि भारत की शिक्षा पद्धति अभी भी अत्यधिक वयस्क-निर्भर है, जहां बच्चों के साथ कार्य करने के बजाय उनके लिए कार्य कर दिया जाता है।
उन्होंने कहा कि दुनिया के सबसे युवा देशों में से एक होने के नाते भारत को ऐसे बच्चों की आवश्यकता है, जो केवल शैक्षणिक रूप से नहीं, बल्कि भावनात्मक और सामाजिक रूप से भी मजबूत हों।
अपने संबोधन के अंत में सांसद गुप्ता ने कहा कि अनुच्छेद 21बी का प्रस्ताव केवल एक संवैधानिक बदलाव नहीं, बल्कि भारत में बचपन को नए सिरे से परिभाषित करने की प्रतिबद्धता है। उन्होंने आंगनवाड़ी ढांचे को मजबूत करने, कार्यकर्ताओं पर गैर-जरूरी बोझ कम करने, दिव्यांगता एवं दुर्लभ बीमारियों से जुड़े समर्थन को बढ़ाने, विशेष शिक्षकों की संख्या बढ़ाने और समग्र विकास आधारित पाठ्यचर्या तैयार करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
गुप्ता ने कहा, “यह संकल्प केवल आज के बच्चों का नहीं, बल्कि कल के नागरिकों का भविष्य तय करता है। मैं इसे पूरी निष्ठा और दृढ़ विश्वास के साथ समर्थन देता हूँ।”
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