IISF 2025 के तीसरे दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन पर हुई चर्चा, नए ज़माने की टेक्नोलॉजी का शानदार प्रदर्शन
पंचकूला, 8 दिसंबर 2025: भारत अंतरराष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव (IISF) 2025 का तीसरा दिन तकनीक, नवाचार और देश की तेज़ रफ्तार वैज्ञानिक प्रगति का प्रेरक प्रत्यक्ष प्रदर्शन बनकर सामने आया। छात्र, नवप्रवर्तक और विज्ञान प्रेमी “New Age Technologies” विषय पर आयोजित उच्च स्तरीय पैनल चर्चा में अंतरिक्ष, रक्षा और दूरसंचार के उभरते क्षेत्रों के बारे में जानने के लिए एकत्र हुए।
इस सत्र में भारत के वैज्ञानिक एवं औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र की प्रमुख विभूतियाँ एक ही मंच पर उपस्थित रहीं, जिनमें शामिल थे—डॉ. एस. सोमनाथ, पूर्व अध्यक्ष, इसरो एवं सचिव, अंतरिक्ष विभाग; डॉ. अभय पाशिलकर, निदेशक, CSIR–NAL बेंगलुरु; डॉ. प्रह्लाद रामाराव, पूर्व निदेशक, DRDL–DRDO; जगमोहन बाली, चीफ टेक्नोलॉजी ऑफिसर, भारती एयरटेल; तथा जीवन तलेगांवकर, वाइस प्रेसिडेंट, जियो।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत का अंतरिक्ष विकास
भारत की अंतरिक्ष यात्रा पर विचार रखते हुए डॉ. एस. सोमनाथ ने चंद्रयान-3 मिशन के अनुभव साझा किए और देश की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत की अंतरिक्ष उपलब्धियों में अभूतपूर्व गति लाई है। गगनयान जैसे आगामी मिशन भारत की तकनीकी क्षमता का स्पष्ट प्रमाण हैं।
डॉ. सोमनाथ ने कहा, “अंतरिक्ष अन्वेषण के नए अवसर लगातार खुल रहे हैं। चंद्रमा, मंगल और अन्य ग्रहों को लेकर दुनिया में अभूतपूर्व रुचि बढ़ी है। भारत ने चंद्रमा पर पुनः जाने की घोषणा की है और हम ब्रह्मांड की उत्पत्ति समझने वाले वैज्ञानिक मिशनों पर भी कार्य कर रहे हैं। जल्द ही आपके मोबाइल फोन को सीधे अंतरिक्ष से सिग्नल मिल सकेंगे। भारतीय छात्र पहले से ही अपने रॉकेट और सैटेलाइट विकसित कर रहे हैं, जो नए युग की शुरुआत है।”
ड्रोन तकनीक: विभिन्न क्षेत्रों में गेम चेंजर
डॉ. अभय पाशिलकर ने भारत में ड्रोन तकनीक की बढ़ती उपयोगिता और भूमिका पर विस्तार से चर्चा की—लंबी अवधि तक उड़ान भरकर निगरानी करने वाले प्लेटफॉर्म से लेकर माल ढुलाई करने वाले उन्नत ड्रोन तक। उन्होंने बताया, “ड्रोन की क्षमताएँ अत्यंत व्यापक हैं। कुछ ड्रोन 90 दिनों से भी अधिक समय तक उड़ान भरने में सक्षम हैं।”
उन्होंने बताया कि कृषि, लॉजिस्टिक्स, आपदा प्रबंधन और बड़े पैमाने की मैपिंग जैसी गतिविधियों में ड्रोन महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। डॉ. पाशिलकर ने कहा कि भारत सरकार राष्ट्रीय ड्रोन मिशन विकसित कर रही है, जिससे युवा नवप्रवर्तकों को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप ड्रोन-आधारित समाधान विकसित करने में सशक्त बनाया जाएगा।
रक्षा नवाचार और गैर-संपर्क युद्ध का उदय
भारत की रक्षा क्षमताओं पर प्रकाश डालते हुए डॉ. प्रह्लाद रामाराव ने ब्रह्मोस और आकाश जैसी उन्नत सतह-से-हवा मिसाइल प्रणालियों के विकास का उल्लेख किया तथा ऑपरेशन सिंदूर की सफलता पर विस्तृत जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि आकाश और ब्रह्मोस जैसी प्रणालियों ने वैश्विक मंच पर भारत की तकनीकी श्रेष्ठता को सिद्ध किया है। उन्होंने कहा, “आकाश प्रणाली ने मजबूत दीवार की तरह राष्ट्र की रक्षा की है, जबकि ब्रह्मोस ने अद्भुत सटीकता के साथ दुश्मन के ठिकानों पर प्रभावी वार किया है।”
उन्होंने आगे कहा कि भविष्य में ड्रोन वही भूमिकाएँ निभाएँगे, जो आज फाइटर पायलट निभाते हैं—हमला और रक्षा दोनों में—और यह आधुनिक युद्ध के स्वरूप को निर्णायक रूप से बदल देगा।
दूरसंचार में 5G, 6G और एकीकृत नेटवर्क की ओर तीव्र प्रगति
दूरसंचार क्षेत्र पर चर्चा करते हुए भारती एयरटेल के CTO जगमोहन बाली और जियो के उपाध्यक्ष जीवन तलेगांवकर ने 2G से 5G तक भारत की प्रगति और 6G की आधारशिला पर प्रकाश डाला।
जीवन तलेगांवकर ने स्वदेशी 5G नेटवर्क निर्माण के उल्लेखनीय प्रयासों का स्मरण करते हुए कहा,
“हम अक्सर सोचते हैं कि भारत में चमत्कार नहीं होते, लेकिन 5G ने यह मिथक तोड़ दिया। 2,000 से अधिक इंजीनियरों ने दिन-रात मेहनत की। जब पूछा गया कि क्या हमें यूरोपीय साझेदारों की आवश्यकता है, जवाब साफ था—हम अपना 5G नेटवर्क स्वयं बनाएंगे। जैसे वैज्ञानिक अंतरिक्ष में नए आयाम स्थापित कर रहे हैं, वैसे ही हम धरती पर नवाचार की नई गाथा लिख रहे हैं।”
जगमोहन बाली ने कहा कि अगली दूरसंचार क्रांति स्थलीय और गैर-स्थलीय नेटवर्क को एकीकृत करेगी।
“ड्रोन सिस्टम, विमान और मिसाइल तकनीकें एक ही तकनीकी छतरी के नीचे आएंगी। मोबाइल नेटवर्क और अंतरिक्ष-आधारित प्रणालियों के एकीकरण से विश्व स्तरीय निर्बाध कनेक्टिविटी सुनिश्चित होगी, चाहे कोई समुद्र के बीच ही क्यों न हो।”
चंद्रमा की खोजें जो लगातार प्रेरित करती हैं
डॉ. सोमनाथ ने भारत के चंद्र अभियानों को याद करते हुए कहा, “चंद्रमा पर जाना कभी आसान नहीं रहा। चंद्रयान-1 ने चंद्र सतह पर पानी की खोज कर विश्व को चौंकाया और यह भी बताया कि चंद्रमा टेक्टोनिक रूप से अभी भी सक्रिय है। ये खोजें हमारी वैज्ञानिक जिज्ञासा को निरंतर प्रोत्साहित करती हैं और अंतरिक्ष अन्वेषण के नए रास्ते खोलती रहती हैं।”

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