स्वास्थ्य सुरक्षा से राष्ट्रीय सुरक्षा सेस विधेयक का समर्थन करते हुए सांसद कर्तिकेय शर्मा बोले — भारत अब कैंसर जैसी बढ़ती चुनौती के खिलाफ निर्णायक वित्तीय लड़ाई के लिए तैयार

पंचकूला दिसंबर 8: राज्यसभा सांसद कर्तिकेय शर्मा ने आज स्वास्थ्य सुरक्षा से राष्ट्रीय सुरक्षा सेस विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य सूचकांकों की वर्तमान स्थिति ऐसे साहसिक और पर्याप्त वित्तीय प्रावधान वाले कदम की मांग करती है।



उन्होंने कहा कि यह विधेयक नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है। स्वास्थ्य को अब खर्च नहीं, बल्कि राष्ट्र के भविष्य में रणनीतिक निवेश माना जा रहा है। हानिकारक उत्पादों पर सेस लगाकर उस राजस्व को सीधे स्वास्थ्य कार्यक्रमों में लगाना एक ऐसा मॉडल है जो प्रभावी होने के साथ-साथ न्यायसंगत और दूरदृष्टि युक्त भी है।


भारत में बढ़ता कैंसर बोझ राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न बन रहा है


शर्मा ने बताया कि भारत में हर वर्ष 14 लाख से अधिक नए कैंसर मामले सामने आते हैं और लगभग 9 लाख मौतें कैंसर के कारण होती हैं। वर्ष 1990 से 2023 के बीच कैंसर के मामलों में 26 प्रतिशत और मृत्यु दर में 21 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। यह प्रवृत्ति, उन्होंने कहा, स्पष्ट रूप से संकेत देती है कि स्वास्थ्य ढांचे में त्वरित और संरचनात्मक हस्तक्षेप की आवश्यकता है।


उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि भारत में महिलाओं के कुल कैंसर मामलों का 27 प्रतिशत केवल स्तन कैंसर है। वहीं सर्वाइकल कैंसर हर वर्ष 70–77 हजार महिलाओं की मृत्यु का कारण बनता है, और 80 प्रतिशत से अधिक मामलों का पता देर से चलता है। हरियाणा में सर्वाइकल कैंसर महिलाओं के कुल कैंसर मामलों का 12–14 प्रतिशत हिस्सा है, जो मुख्य रूप से ग्रामीण और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को प्रभावित करता है।


प्रधानमंत्री का दृष्टिकोण: स्वस्थ नारी, सशक्त परिवार


शर्मा ने कहा कि प्रधानमंत्री के स्वस्थ नारी सशक्त अभियान की मूल भावना बेहद स्पष्ट है — यदि महिलाएँ स्वस्थ होंगी तो परिवार सशक्त होंगे, और जब परिवार सशक्त होंगे तो राष्ट्र मजबूत बनेगा।

उन्होंने कहा कि यह केवल एक नारा नहीं है, बल्कि हाल के वर्षों की अनेक प्रभावशाली सामाजिक और स्वास्थ्य पहलों की प्रेरक शक्ति भी है।


नमो शक्ति रथ: समुदाय-आधारित महिलाओं की स्वास्थ्य सुरक्षा का मॉडल


शर्मा ने बताया कि इसी राष्ट्रीय दृष्टि से प्रेरित होकर उन्होंने हरियाणा में नमो शक्ति रथ की शुरुआत की। इस पहल का उद्देश्य स्तन और सर्वाइकल कैंसर जैसी बीमारियों की रोकथाम हेतु महिलाओं को उनके घर-द्वार पर ही स्क्रीनिंग सुविधा उपलब्ध कराना है — खासकर उन बीमारियों के लिए जिन पर समाज में अक्सर चर्चा भी नहीं होती।


उन्होंने कहा, आमतौर पर स्वास्थ्य सेवाएँ लोगों को अपने पास बुलाती हैं, लेकिन नमो शक्ति रथ स्वास्थ्य सेवाओं को लोगों तक पहुँचाता है।


इस परियोजना के तहत 20 से अधिक आधुनिक मोबाइल वैनें संचालित की जाएँगी, जिन्हें MPLADS निधि और व्यक्तिगत योगदान के माध्यम से समर्थित किया जा रहा है। प्रत्येक वैन में डॉक्टर, प्रशिक्षित तकनीशियन और फील्ड टीमें तैनात रहती हैं, जो गाँव-गाँव जाकर कैंसर स्क्रीनिंग, बुनियादी जाँच और जागरूकता कार्यक्रम संचालित करती हैं। ये वैनें दर्जनों ग्राम पंचायतों को कवर कर चुकी हैं और हजारों महिलाओं को समय रहते जाँच का लाभ मिला है।


शर्मा ने कहा कि ज़मीन पर मिला अनुभव अत्यंत प्रेरक रहा है। कई महिलाएँ, जिन्होंने जीवन में कभी एक भी स्क्रीनिंग नहीं करवाई थी, अब अपने ही गाँव में कुछ ही मिनटों में जाँच करवा पा रही हैं। कई मामलों में शुरुआती चरण में ही जोखिमों की पहचान हो चुकी है, और उन्होंने कहा कि भारत की कैंसर-विरोधी लड़ाई की शुरुआत वास्तव में यहीं से होती है।


उन्होंने आगे कहा कि नमो शक्ति रथ सिर्फ एक स्वास्थ्य परियोजना नहीं है। यह वह उदाहरण है कि जब संसद की मंशा और ज़मीनी क्रियान्वयन साथ आते हैं, तो परिवर्तन कैसे दिखाई देता है। यह विधेयक की उस मूल भावना को पूरा दर्शाता है — जल्दी पहचान, जागरूकता और महिलाओं के स्वास्थ्य में निवेश ही भारत के भविष्य को सुरक्षित कर सकता है।


नीति तभी सार्थक, जब प्रभाव ज़मीन पर दिखे


शर्मा ने कहा कि संसद में बनी नीतियाँ तभी सफल होती हैं जब वे उन लोगों तक पहुँचें जिनके लिए वे बनाई गई हैं। सांसदों की जिम्मेदारी है कि दिल्ली से शुरू हुई योजनाएँ जिलों, ब्लॉकों और गाँवों में वास्तविक परिणाम के रूप में दिखें। उनके लिए नमो शक्ति रथ उसी कड़ी को मजबूत करने का व्यक्तिगत संकल्प है।


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